कैसे बढ़ेगा INDIA? मीटिंग के अगले ही दिन AAP ने पंजाब में दे दिया झटका
नईदिल्ली
इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इनक्लूसिव अलायंस यानी I.N.D.I.A गठबंधन को बने सात महीने हो गए। जून से दिसंबर के बीच अभी तक चार मीटिंग हुई है। पटना से दिल्ली के बीच इंडी गठबंधन में 2024 लोकसभा चुनाव के लिए बातें हुईं। नरेंद्र मोदी को सत्ता से हटाने के लिए हर सीट पर वन टु वन लड़ाई का आइडिया भी आया। पटना, चेन्नई और मुंबई में फोटो सेशन का दौर भी चला मगर गठबंधन की गाड़ी सात महीनों में दो कदम भी नहीं चल पाई। मीटिंग में कभी ममता रूठीं तो कभी नीतीश और लालू नाराज हुए। अब लोकसभा चुनाव के ऐलान में सिर्फ चार महीने बचे हैं और गठबंधन के पास राज्यों के हिसाब से कन्वेनर का चुनाव, सीट शेयरिंग, कॉमन मिनिमम प्रोग्राम, मेनिफेस्टो और चुनावी कार्यक्रम जैसे फैसले पेंडिंग पड़े हैं। नई दिल्ली की चौथी बैठक में इंडी गठबंधन में शामिल 28 दल ठोस नतीजे पर नहीं पहुंच पाए। पॉलिटिकल एक्सपर्ट नदीम मानते हैं कि विपक्षी गठबंधन की प्रॉब्लम यह है कि हर पार्टनर को ड्राइविंग सीट ही चाहिए, इस कारण इंडी गठबंधन हर मोर्चे पर पिछड़ता जा रहा है।
मुंबई में बनीं कमेटियों ने तीन महीने में क्या किया, कोई जवाब नहीं
इंडी गठबंधन की तीसरी बैठक मुंबई में हुई थी। मुंबई बैठक में कोई बड़ा फैसला तो नहीं हुआ, मगर 13 सदस्यीय कोर्डिनेशन कमेटी बनाई गई। इसके अलावा इंडिया गठबंधन का अलग झंडा बनाने का ऐलान भी हुआ था। मीडिया, प्रचार, सोशल मीडिया, कैंपेन और रिसर्च के लिए कमेटियां बनाई गईं। पिछले तीन महीने में कोर्डिनेशन कमेटी की एक बैठक दिल्ली में शरद पवार के आवास पर हुई। इसके अलावा इंडी गठबंधन में कोई भी फैसला ऐसा नहीं हुआ, जिससे लगता हो कि गठबंधन की गाड़ी चुनावी पटरी पर आगे की ओर बढ़ रही है। लोकसभा चुनाव में जाने से पहले इंडी गठबंधन अभी तक तय नहीं कर पाया है कि वह नरेंद्र मोदी के विजन से मुकाबले के लिए क्या नया एजेंडा लेकर आए हैं? इससे उलट हर बैठक के बाद नेताओं की नाराजगी और टांग खिंचाई की खबरें ही सामने आ रही हैं। दिल्ली की बैठक में जब अरविंद केजरीवाल और ममता बनर्जी ने दलित पीएम के चेहरे के तौर मल्लिकार्जुन खड़गे का नाम उछाला तो इसके पीछे भी नूराकुश्ती सामने आ गई। चर्चा है कि नीतीश कुमार, राहुल गांधी और शरद पवार की दावेदारी खत्म करने के लिए यह सोची समझी रणनीति थी। अगली मीटिंग कब होगी यह तय नहीं है। फिलहाल 30 जनवरी को महागठबंधन पटना के गांधी मैदान में एक रैली कर फिर से एकजुटता दिखाएगी।
इंडिया में क्षेत्रीय दलों को साध पाना कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी। यूपी, बिहार, महाराष्ट्र, वेस्ट बंगाल, तमिलनाडु, पंजाब और दिल्ली, यह सात राज्य ऐसे हैं, जहां से 543 लोकसभा सीटों में से 269 लोकसभा सीट आती हैं। इनमें से यूपी, बिहार, बंगाल और तमिलनाडु चार राज्य ऐसे हैं, जहां कांग्रेस खुद में कोई ताकत नहीं है। यूपी में गैर बीजेपी राजनीति एसपी-बीएसपी के इर्द-गिर्द घूमती है। बंगाल में टीएमसी ने वामदलों और कांग्रेस दोनों को नेपथ्य में ढकेल रखा है। बिहार में भी कांग्रेस आरजेडी-जेडी यू की बैसाखी पर ही है। तमिलनाडु में डीएमके के बगैर कांग्रेस का कोई वजूद नहीं है। इसके अलावा 48 सीट वाले महाराष्ट्र में भी एनसीपी और शिवसेना का दबदबा कांग्रेस से कहीं ज्यादा दिखता है। पंजाब और दिल्ली में जहां कभी गैर बीजेपी दल के रूप में कांग्रेस जानी जाती थी, वह जगह आम आदमी पार्टी ने ले लिया है। राजनीति को 'पावर गेम' कहा ही जाता है। ऐसे में यह दल अपने-अपने राज्य में I.N.D.I.A. की 'ड्राइविंग सीट' पर खुद ही रहना चाहते हैं।
पहले कांग्रेस ने ही अटकाई टांग, तीन महीने का एकांत
मुंबई बैठक के बाद तीन महीने तक इंडिया की बैठक नहीं हुई, कांग्रेस पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में व्यस्त हो गई। जिससे नीतीश कुमार नाराज भी हुए। विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने विपक्षी गठबंधन के दलों को इग्नोर ही किया। मध्यप्रदेश के सीएम कैंडिडेट कमलनाथ ने अखिलेश-वखिलेश वाला बयान देकर गठबंधन को हाशिये पर ही डाल दिया। कांग्रेस को उम्मीद थी कि विधानसभा चुनाव परिणाम उसके पक्ष में होंगे और फिर वह सीटों के बंटवारे के लिए मजबूत स्थिति में होगी। इस कारण सीटों के बंटवारे के दौरान मजबूत स्थिति में रहेगी। तीन महीनों तक इंडिया गठबंधन की गाड़ी एक इंच नहीं खिसकी। चुनाव परिणाम कांग्रेस की उम्मीदों के खिलाफ आए, तब जाकर वह विपक्षी बैठक करने को मजबूर हुई। गठबंधन के नेता मोदी हटाओ की बयानबाजी तो कर रहे हैं मगर महंगाई और बेरोजगारी को मुद्दा मानने वाले नेता और पार्टियों का संघर्ष सड़कों पर नहीं दिखा है। जातीय जनगणना की हवा विधानसभा चुनाव में ही निकल चुकी है।
लेटलतीफी से गठबंधन के भविष्य पर संकट
- विपक्षी गठबंधन में शामिल सभी क्षेत्रीय दल उलझन में हैं। आरएलडी और सीपीआई जैसे छोटे पार्टनर चुनाव की रेस में पिछड़ते जा रहे हैं।
- 2024 में इंडिया गठबंधन के सभी दल चुनाव प्रचार में पिछड़ जाएंगे, जबकि बीजेपी ने आक्रमक तरीके से मैदान में कूद पड़ी है।
- वोटरों के बीच कन्फ्यूजन बढ़ रहा है। क्या गठबंधन के लिए एक मंच पर आए दलों का एजेंडा सिर्फ नरेंद्र मोदी को हटाना है।
- अभी तक यह नैरेटिव ही सामने आया है कि विपक्ष मोदी हटाओ अभियान के लिए एकजुट है। जनकल्याण के लिए विपक्ष के पास कोई प्लान नहीं है।
- वोट देने वाली जनता को यह पता नहीं चल पाया है कि मतभेद रखने वाले विपक्षी दलों के पास कॉमन मिनिमम प्रोग्राम क्या है?
- बाकी बचे चार महीने में जातीय जनगणना के अलावा और कौन सा मुद्दा है, जिसके आधार पर इंडी गठबंधन के पार्टनर चुनाव लड़ेंगे।
- इंडिया के पास नरेंद्र मोदी का विकल्प क्या है? कौन से चेहरे प्रधानमंत्री की रेस में है?,जिसके आधार पर मोदी विरोधी भी वोट करेंगे।