CG में आदिवासी वोटर तय करेंगे, किसकी बनेगी सरकार

रायपुर

छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव (Chhattisgarh Assembly Elections 2023) में आदिवासी वोटरों की भूमिका बहुत अहम रही है. आगामी चुनाव में भी यह भूमिका निर्णायक साबित होने वाली है. यही वजह है कि आदिवासी वोटरों पर पकड़ रखने वाले नेताओं की पूछ बढ़ गई है. आदिवासियों के बड़े नेता नंद कुमार साय ने BJP छोड़ कर कांग्रेस का दामन थाम लिया है तो एक अन्य आदिवासी नेता अरविंद नेताम ने कांग्रेस से इस्तीफा देकर सर्व आदिवासी समाज के लिए काम करना तय किया है.

छत्तीसगढ़ में आदिवासियों की आबादी 34% है और 90 सीटों वाली विधानसभा में करीब एक तिहाई सीटें ST के लिए आरक्षित हैं. कांग्रेस ने 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में 29 ST सीटों में से 26 पर कब्जा जमाया था. बाद में हुए उपचुनावों के बाद कांग्रेस ने इन 29 में से 28 सीटें अपने नाम कर लीं. जाहिर है कि आदिवासियों के लिए सुरक्षित सीटों पर कांग्रेस का दबदबा है. इस दबदबे को मजबूत करने में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल जुटे हुए हैं और लगातार रणनीतियों को अंजाम दे रहे हैं.

2018 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की बंपर जीत से ही नतीजे निकाल लेना बहुत सही नहीं होगा. ठीक अगले साल 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में BJP ने छत्तीसगढ़ में 11 में से 8 सीटें जीती थीं. इनमें आदिवासियों के लिए सुरक्षित चार सीटों में से तीन पर BJP ने कब्जा जमाया था. कांग्रेस को एक सीट पर संतोष करना पड़ा था.

क्यों निर्णायक हैं आदिवासी वोटर

कहने की जरूरत नहीं कि आगामी विधानसभा चुनाव में जो दल आदिवासियों को रिझाने में कामयाब रहेगा उसकी छत्तीसगढ़ में सरकार होगी. आगामी विधानसभा चुनाव में आदिवासी वोटरों के निर्णायक होने के पीछे कई तर्क हैं.

पहला तर्क है कि इस बार एकतरफा मुकाबला नहीं होगा. BJP से कांग्रेस को कड़ी टक्कर मिलेगी. दूसरा तर्क ये है कि बीते चुनाव में 14 विधानसभा सीटें ऐसी रही थीं जहां नोटा पर पड़े वोट तीसरे नंबर पर रहे थे. नोटा वोटों को एंटी इनकंबेंसी के साथ-साथ विपक्ष से नाउम्मीदी वाला वोट भी माना जाता है. ये वोट अगर विपक्ष यानी BJP अपने साथ कर पाती है तो कांग्रेस को नाको चने चबाने पड़ेंगे.

तीसरा तर्क लोकसभा चुनाव नतीजों के आधार पर यह है कि BJP के वोटर छत्तीसगढ़ में उसके साथ बने हुए हैं. महज इस वजह से वे छिटक गये थे क्योंकि तत्कालीन रमन सिंह सरकार के प्रति उनकी गहरी नाराजगी थी. अब बदली हुई परिस्थिति में लोकसभा में BJP को वोट देने वाला वोटर एक बार फिर विधानसभा में BJP के लिए वोट कर सकते हैं.

आदिवासी इलाकों में नक्सलियों से निपटने के लिए BJP की रमन सिंह सरकार ने जो सलवा जुडूम अभियान चलाया था उससे आदिवासियों के बीच गहरी नाराजगी रही थी. बाद में अदालत ने इस अभियान को अवैध करार दिया था. बदलते वक्त के साथ क्या आदिवासियों के बीच BJP के लिए नाराजगी कम हुई है ये अहम सवाल है और इसी पर BJP का एसटी सीटों पर परफॉर्मेंस भी निर्भर करने वाला है.

बस्तर और सरगुजा पर फोकस
सरगुजा और बस्तर संभाग राज्य के आदिवासी बाहुल्य इलाके हैं। बीजेपी और कांग्रेस के सीनियर लीडर लगातार इन क्षेत्रों का दौरा कर रहे हैं। इस क्षेत्र में सर्व आदिवासी समाज के साथ-साथ क्षेत्रीय पार्टी गोंडवाना गणतंत्र पार्टी का भी अशर देखने को मिलता है। केन्द्रीय मंत्री अमित शाह भी बस्तर क्षेत्र का दौरा कर चुके हैं। अभी हाल ही में कांग्रेस ने जगदलपुर में कार्यकर्ता सम्मेलन आयोजित किया था। वहीं, बीजेपी के छत्तीसगढ़ प्रभारी ओम माथुर भी लगातार यहां का दौरा कर रहे हैं।

कांग्रेस-BJP में आदिवासियों के बीच तगड़ी टक्कर

कांग्रेस के लिए सुखद बात ये है कि मुख्यमंत्री भूपेश सिंह बघेल ने आदिवासियों के बीच पकड़ बनाए रखने की पूरी कोशिश करते रहे हैं. शपथ लेने के बाद ही भूपेश बघेल ने आदिवासियों की हजारों एकड़ जमीन वापस कराने का फैसला लिया था. इस जमीन को प्रस्तावित स्टील परियोजना के लिए अधिग्रहित किया गया था. धान के समर्थन में मूल्य में वृद्धि के फैसले से भी आदिवासी किसान खुश हैं. वनोपज के समर्थन में मूल्य में वृद्धि और उसकी खरीद की व्यवस्था किए जान से भी आदिवासियों को राहत मिली है. इसका फायदा कांग्रेस को मिल सकता है.

आदिवासियों के बीच लोकप्रिय नेताओं में BJP के दिलीप सिंह जूदेव का नाम सबसे ऊपर आता है. इस परिवार की साख अब भी कायम है. मगर, बीते दिनों युद्धवीर सिंह जूदेव की असमय मृत्यु से BJP को गहरा धक्का लगा था. अब भी जूदेव परिवार की बदौलत BJP आदिवासियों के बीच सक्रिय है. BJP के लिए नंद कुमार साय भी महत्वपूर्ण नेता रहे थे जो बीजेपी का दामन छोड़कर कांग्रेस में जा चुके हैं. ये BJP के लिए बड़ा धक्का है. आदिवासी इलाकों में आरएसएस (RSS) भी लगातार सक्रिय रहा है. धर्मांतरण जैसे कार्यक्रमों के जरिए BJP की पहुंच रही है. इसका फायदा भी BJP को मिल सकता है.

आदिवासी वोटरों को रिझाने की कोशिश में BJP और कांग्रेस में इन दिनों स्पर्धा चल रही है. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल जहां स्वयं कमान संभाले हुए हैं वहीं BJP की ओर से अमित शाह लगातार ओम माथुर और नितिन नवीन के माध्यम से छत्तीसगढ़ पर नजर बनाए हुए हैं. शाह कई बार छत्तीसगढ़ का दौरा भी कर चुके हैं. लड़ाई दिलचस्प है. देखना यही है कि आदिवासी वोटरों का सियासी मिजाज बदलता है या नहीं.

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