जल जीवन मिशन की शुरूआत, विशेष पिछड़ी जनजाति के 71 बसाहटों में लगेंगे ढाई सौ हैंडपंप

कोरबा

वनांचल क्षेत्र में रहने वाले विशेष पिछड़ी जनजाति के लोगों को अब ढोंढी की पानी से मुक्ति मिलेगी। केंद्र सरकार ने जल जीवन मिशन के तहत जिले के 71 कोरवा व बिरहोर सहित अन्य आदिवासियों के विरल बसाहटों के लिए पीएचई विभाग को 6.80 करोड़ रुपये की स्वीकृति दी है।

केंद्र सरकार ने पेयजल संकट निदान के लिए जल जीवन मिशन की शुरूआत की है, लेकिन यह सघन बसाहटों के लिए ही कारगर है। कोरबा विकासखंड के फुटहामुड़ा, चीताबुड़ा, जामभांठा, सोनारी, कोरवापारा, पाली विकासखंड के बिरहोर मोहल्ला, डोंगानाला जंगलपारा, कटघोरा के समेलीभांठा आदि ऐसे गांव हैं जहां बसाहट विरल यानी आठ से दस परिवार होने की वजह पेयजल की व्यवस्था सुदृढ़ नहीं है।

अब नही होगी पेयजल की किल्लत
लोगाें को आज भी लंबी दूरी तय कर ढोंढी से पानी लाना पड़ता है। ग्रीष्म शुरू होने से पहले जल संकट शुरू हो जाती हैं। जल जीवन मिशन शुरू होने की वजह हैंडपंप उत्खनन के लक्ष्य को कम दिया गया था। इस वजह से विरल बसाहट के पिछड़ी जनजाति के बसाहट में हैंडपंप की सुविधा से वंचित थे। हैंडपंप उत्खनन की स्वीकृति मिलने से विरल बसाहटाें में पेयजल की किल्लत नहीं होगी। नवंबर माह से कार्य को शुरू कर अप्रैल तक पूरा किया जाएगा। उल्लेखनीय है कि बसाहटों के पहले भी हैंडपंप लगाए गए थे। स्त्रोत सूखने की वजह से हैंडपंप बंद हो चुके हैं। बहरहाल स्वीकृत राशि से बिगड़े हैंडपंपों का भी संधारण किया जाएगा।

माखनपुर व मांगामार शामिल होंगे समूह जल में चिन्हाकित
गांवों में माखनपुरन और मांगामार ऐसे गांव हैं जहां विशेष पिछड़ी जनजाति के विरल बसाहट होने के बाद भी इन्हे जल जीवन मिशन से जोड़ा जाएगा। सघन बसाहट से आदिवासियों की बस्ती निकट होने की वजह से यह निर्णय लिया गया है। जल आपूर्ति सुनिश्चत होने से आदिवासी परिवारों के लोगों को प्रदूषित पेयजल की संकट से निजात मिलेगी। डायरिया सहित अन्य जल जनित बीमारी से मुक्ति मिलने से जीवन स्तर में सुधार होगा।

डेढ़ सौ परिवार पर एक हैंडपंप की सुविधा
डेढ़ सौ परिवार के लिए एक हैंडपंप की सुविधा का नियम है। जल जीवन मिशन और नलजल योजना शुरू होने से हैंडपंप पर लोगाें की निर्भरता घटी है। बहरहाल विशेष पिछड़ी जनजाति बसाहटों में परिवारों की संख्या कम होने से हैंडपंप सुविधा पर्याप्त होगी। ऐसे भी बसाहट हैं जहां ढोंढी विशेष पिछड़ी जनजाति के रहवास स्थल के आसपास ही है।

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