बुआ और भतीजा दोनों ही CM पद के दावेदार, किसका पलड़ा भारी?

नई दिल्ली

राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भारतीय जनता पार्टी की एकतरफा जीत के बाद एक ही सवाल सियासी गलियारों में पूछा जा रहा है- मुख्यमंत्री कौन बनेगा? सिंधिया राजपरिवार के लिए भी यह सवाल काफी अहम है. राजस्थान और मध्य प्रदेश में सिंधिया राजपरिवार के सियासी वारिस मुख्यमंत्री पद के बड़े दावेदार हैं.

राजस्थान में वसुंधरा राजे 2 बार मुख्यमंत्री भी रह चुकी हैं. वसुंधरा इस बार भी पार्टी की तरफ से सबसे प्रबल दावेदार हैं. मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री की रेस में वसुंधरा के भतीजे ज्योतिरादित्य सिंधिया का भी नाम है. 

ज्योतिरादित्य सिंधिया के नाम की चर्चा इसलिए भी है, क्योंकि 2021 में असम में बीजेपी ने कांग्रेस से आए हिमंत बिस्वा सरमा को मुख्यमंत्री बनाया था. 

बीजेपी सूत्रों का कहना है कि सिंधिया परिवार से एक व्यक्ति को मुख्यमंत्री की कुर्सी मिल सकती है. पार्टी यह फैसला लोकसभा चुनाव के मद्देनजर करेगी, जिससे राजपरिवार के प्रभाव वाले इलाकों में बड़ी सेंधमारी न हो.

चुनावी राजनीति में असरदार सिंधिया राजपरिवार
आजाद भारत में सिंधिया राजपरिवार से सबसे पहले राजनीति में ग्वालियर की राजमाता विजयराजे सिंधिया आई थीं. विजयराजे कांग्रेस के टिकट पर 1957 में पहली बार गुना लोकसभा सीट से संसद पहुंचीं. हालांकि, जल्द ही विजयराजे का कांग्रेस से मोहभंग हो गया और उन्होंने स्वतंत्र पार्टी का दामन थाम लिया. 

विजयराजे सिंधिया बीजेपी की संस्थापक सदस्यों में रही हैं. इतना ही नहीं, शिवराज सिंह चौहान समेत मध्य प्रदेश में कई युवा नेताओं को आगे लाने में उन्होंने अहम भूमिका निभाई. 

1980 के दशक में विजयराजे के बेटे माधवराव और बेटी वसुंधरा की राजनीति में एंट्री हुई. माधवराव निर्दलीय जीतकर कांग्रेस में शामिल हो गए, जबकि वसुंधरा बीजेपी के टिकट पर पहली बार ही चुनाव हार गईं. 

1984 में वसुंधरा मध्य प्रदेश के भिंड लोकसभा से चुनाव मैदान में उतरी, लेकिन कांग्रेस के कृष्णा सिंह से हार गईं.

इसके बाद भैरो सिंह शेखावत के कहने पर विजयराजे ने वसुंधरा को राजस्थान भेज दी. तब से वसुंधरा राजस्थान की ही राजनीति कर रही हैं. इधर, राजमाता के बेटे माधवराव जीवनपर्यंत कांग्रेस में रहे और कई सरकार में केंद्रीय मंत्री बने.

माधवराव के निधन के बाद उनके बेटे ज्योतिरादित्य राजनीति में आए. ज्योतिरादित्य मनमोहन सरकार में मंत्री रहे. 2018 में वे कांग्रेस की तरफ से मुख्यमंत्री की रेस में शामिल थे, लेकिन पार्टी ने उन्हें वेटिंग का टिकट थमा दिया.

 2019 में गुना से लोकसभा चुनाव हारने के बाद ज्योतिरादित्य का कांग्रेस से मोहभंग हो गया. 2020 में उन्होंने बीजेपी का दामन थाम लिया. तब से सिंधिया परिवार के सभी सदस्य बीजेपी में ही हैं. 

मध्य प्रदेश के ग्वालियर-चंबल में ज्योतिरादित्य सिंधिया तो राजस्थान के पूर्वी भाग में वसुंधरा राजे सिंधिया का दबदबा है. इन दोनों इलाकों में लोकसभा की 25 सीटें हैं, जो अभी बीजेपी के पास है. वसुंधरा का बेटा दुष्यंत सिंह भी अभी राजस्थान से सांसद हैं. 

बुआ और भतीजा दोनों दावेदार, किसका पलड़ा भारी?

वसुंधरा राजे-  बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष वसुंधरा राजे की नजर तीसरी बार मुख्यमंत्री कुर्सी पर है. संख्याबल में भी वसुंधरा काफी मजबूत स्थिति में है. चुनाव परिणाम आने के बाद से ही वसुंधरा के यहां विधायकों का तांता लग रहा है.

राजनीतिक जानकारों का कहना है कि नेताओं से मिलने के बहाने वसुंधरा शक्ति प्रदर्शन कर रही हैं. वसुंधरा समर्थकों का कहना है कि उनके पक्ष में वर्तमान में 47 विधायक हैं. राजस्थान में बीजेपी को 115 सीटों पर जीत मिली है.

वसुंधरा समर्थकों ने सोशल मीडिया पर एक सूची भी जारी की है. इस सूची के मुताबिक वसुंधरा प्रदेश की एकमात्र नेता थीं, जिन्होंने 49 सीटों पर बीजेपी उम्मीदवार के पक्ष में कैंपेन किया था. 36 ऐसे प्रत्याशी इस चुनाव में जीते हैं, जिसके लिए वसुंधरा ने कैंपेन किया था. 

इनमें प्रताप संघवी, कालीचरण सर्राफ, पुष्पेंद्र राणावत और केके विश्नोई जैसे बड़े नाम शामिल हैं.

हालांकि, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का वीटो और हाईकमान से उनकी अदावत मुख्यमंत्री बनने की राह में रोड़े भी अटका सकता है. 

ज्योतिरादित्य सिंधिया- कांग्रेस से आए ज्योतिरादित्य सिंधिया भी मुख्यमंत्री की रेस में शामिल हैं. हालांकि, सिंधिया के पक्ष में आंकड़ा नहीं है. सिंधिया के कई करीबी नेता इस चुनाव में बुरी तरह हारे हैं. इनमें मंत्री महेंद्र सिसोदिया, पूर्व मंत्री इमरती देवी का नाम शामिल हैं.

सियासी जानकारों का कहना है कि राजस्थान में अगर वसुंधरा का कद घटेगा, तो बीजेपी डैमेज कंट्रोल के लिए ज्योतिरादित्य सिंधिया के नाम को आगे बढ़ा सकती है. 

हालांकि, यह सिर्फ अटकलें भर है. बीजेपी में नए-नवेले ज्योतिरादित्य के लिए मुख्यमंत्री का कुर्सी पाना आसान नहीं है. पार्टी में शिवराज सिंह चौहान, प्रह्लाद पटेल, कैलाश विजयवर्गीय, नरेंद्र तोमर जैसे दिग्गज नेता पहले से ही रेस में शामिल हैं. 

सीएम कुर्सी और सिंधिया राजपरिवार की कहानी
1977 में पहली बार जनसंघ की सरकार मध्य प्रदेश में बनी थी. उस सरकार में विजयराजे ने मुख्यमंत्री बनाने में अहम भूमिका निभाई थी. 1993 में मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी, तो माधवराव सिंधिया मुख्यमंत्री पद के अहम दावेदार थे, लेकिन उन्हें कुर्सी नहीं मिली. 

2003 में बीजेपी ने सिंधिया परिवार के वसुंधरा को राजस्थान का मुख्यमंत्री बनवा दिया. माधवराव सिंधिया के निधन के बाद यह एक तरह से कांग्रेस को बैकफुट पर लाने की कोशिश थी, लेकिन कांग्रेस ने ज्योतिरादित्य को अपने साथ ले लिया. 

2018 में ज्योतिरादित्य सिंधिया मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार थे, लेकिन उन्हें यह कुर्सी नहीं दी गई. 2 साल बाद सिंधिया ने बगावत कर दी और कांग्रेस की सरकार गिर गई. 

सिंधिया राजपरिवार की राजनीति सत्ता केंद्रित ही रही है. राजस्थान हो या मध्य प्रदेश, बीजेपी हो या कांग्रेस… सिंधिया का परिवार कहीं न कहीं सत्ता में रहा ही है. ऐसे में अगर इस बार परिवार से किसी एक को मुख्यमंत्री नहीं बनाया जाता है, तो राजपरिवार के रसूख पर असर पड़ सकता है. 

साथ ही सिंधिया राजपरिवार और उसके सियासी वारिस के भविष्य को लेकर भी चर्चा हो सकती है.

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