जिला अस्पतालों में पीपीपी से स्थापित होंगी कैथ लैब, दिल के मरीजों को मिलेगा 40 % सस्ता इलाज

भोपाल
हृदय रोगियों के उपचार के लिए प्रदेश में बड़ी सुविधा प्रारंभ करने की तैयारी है। सभी जिला अस्पतालों में सार्वजनिक निजी भागीदारी (पीपीपी) से कार्डियक कैथ लैब की स्थापना का प्रस्ताव है।
कैथ लैब स्थापित होने के बाद एंजियोग्राफी, एंजियोप्लास्टी (हृदय की धमनियों का ब्लाकेज हटाना), हार्ट वाल्व रिप्लेसमेंट और पेसमेकर लगाने जैसे काम हो सकेंगे। अभी बड़े सरकारी मेडिकल कालेजों से संबद्ध अस्पतालों में ही कैथ लैब स्थापित हैं।
भोपाल के जेपी अस्पताल में है स्थापित
जिला अस्पतालों में केवल भोपाल के जेपी अस्पताल में सरकार अपने स्तर पर कैथ लैब स्थापित कर रही है। बाकी जगह पीपीपी से स्थापित करने का प्रस्ताव तैयार किया गया है।
हृदय रोगियों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। इस कारण जिला अस्पताल के स्तर तक एंजियोग्राफी और एंजियोप्लास्टी की सुविधा देने की तैयारी है।
दो करोड़ में एक कैथ लैब
एक जगह कैथ लैब स्थापित करने में लगभग दो करोड़ रुपये खर्च आता है। सभी जिला अस्पतालों को मिलाकर सौ करोड़ रुपये से अधिक का खर्च आएगा। इसके बाद कार्डियोलाजिस्ट व अन्य मानव संसाधन की व्यवस्था करनी पड़ेगी।
सीटी स्कैन की सुविधा पीपीपी मॉडल पर
सरकारी व्यवस्था में कार्डियोलाजिस्ट छोटे जिलों के लिए मिलना मुश्किल है। इस कारण सरकार खुद की जगह पीपीपी से कैथ लैब स्थापित करने की कोशिश कर रही है। बता दें, इसके पहली सीटी स्कैन की सुविधा पीपीपी से जिला अस्पतालों में चल रही है।
सात बड़े जिला अस्पतालों में एमआरआइ भी पीपीपी से होने लगी है। यह दोनों प्रयोग सफल होने के बाद पीपीपी से कैथ लैब लगाने की योजना है। इस संबंध शीघ्र ही सरकार के स्तर पर निर्णय होने की संभावना है।
मार्केट रेट से 40 फीसदी कम शुल्क में मिलेगी सुविधा
कैथ लैब स्थापित होने से बाजार दर से लगभग 40 प्रतिशत शुल्क में एंजियोग्राफी, एंजियोप्लास्टी व अन्य उपचार की सुविधा मिलने की आशा है। निजी अस्पतालों में एंजियोग्राफी में 15 हजार और एंजियोप्लास्टी के लिए डेढ़ लाख से दो लाख रुपये लगते हैं।
इसके अतिरिक्त आयुष्मान भारत योजना के रोगियों का निश्शुल्क उपचार हो सकेगा। अभी इनमें अधिकतर रोगी उपचार के लिए निजी अस्पतालों में जाते हैं। उनका भुगतान आयुष्मान के अंतर्गत सरकार को करना होता है।