बस्तर में धान की कटाई के बाद दियारी त्यौहार मनाने का सिलसिला हुआ शुरू

जगदलपुर.
बस्तर में दीपावली एवं धान की कटाई के बाद से दियारी त्यौहार मनाने का सिलसिला शुरू हो गया है। धान की फसल घरों में पहुंचने के बाद यह दियारी त्यौहार हिंदू कलेंडर के पूस माह से लेकर माघ पूर्णिमा तक मनाया जाता है। दियारी मनाने का दिन गांव के पुजारी की अनुमति से आहूत ग्राम मुखियों-प्रमुखों की बैठक में सुनिश्चत किया जाता है। इसमें माटी पूजा का महत्व होता है और यह अन्न, पशुधन धोरई तथा चरवाहा पे केंद्रित होता है।

सप्ताह भर में अलग-अलग दिन अलग-अलग गांवों में यह त्यौहार मनाया जाता है। बस्तर में अधिकतर गांवों में मंगलवार, बुधवार और शुक्रवार के दिन ही तय किया जाता है। हालांकि अब धोराई नहीं मिलने के कारण दियारी त्यौहार की परंपरा का निर्वहन मात्र किया जा रहा है, बावजूद इसके कुछ गांवों में अब भी दियारी त्यौहार की पूरी परम्परा के साथ भव्य रूप में मनाया जा रहा है।

उल्लेखनीय है कि बस्तर में हरियाली, नवाखानी व दियारी त्यौहार प्रमुख त्यौहारों में शुमार हैं। ग्रामीण अपने देवी देवताओं की पूजा-अर्चना कर इन त्यौहार को धूम-धाम के साथ मनाते हैं। दियारी त्यौहार के निर्धाारित प्रथम दिवस में रात को गाय-बैल को जेठा बांधते हैं और दियारी के दिन मवेशियों को घर में ही पकवान व खिचड़ी बनाकर खिलाया जाता है। मवेशियों को खिलाने के बाद ग्रामीण ग्रहण करते हैं। दूसरे दिन गोड़धन होता है, उस दिन पूरे गांव के लोग एक जगह एकत्रित होकर पूजा-पाठ करने के बाद मनोरंजन भी करते हैं। प्रत्येक घरों से बैल के सिंग में कपड़ा बांधकर ले जाया जाता है, जिसे धोराई निकालता है। इस दिन गांव में मेला सा माहौल रहता है।
दियारी त्यौहार में आस-पास के गांवों के लोगों के साथ-साथ रिश्तेदार भी बड़ी संख्या में शामिल होते हैं। दियारी त्यौहार के दिन रात्रि में ओडिया नाट का आयोजन किया जाता है। वही गोड़धन के दिन प्रत्येक गांव में मुर्गा बाजार का भी आयोजन किया जाता है। कई गांवों में तो मुर्गा बाजार तीन से चार दिन तक लगातार चलता है। हालांकि पिछले कुछ सालों में यह देखने को मिल रहा है कि गोड़धन का भव्यता कम होते जा रहा है और मुर्गा बाजार का चलन बढ़ता जा रहा है।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button