कमलनाथ ने अपनी हार स्वीकार ली है और कहा- विरोधी दल की जिम्मेदारी निभाएगी कांग्रेस
भोपाल
मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को मिल रही भारी बढ़त के बीच कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ ने अपनी हार स्वीकार ली है और कहा है कि विरोधी दल के नाते कांग्रेस अपने कर्तव्य का निर्वहन करेगी। कांग्रेस के प्रदेश मुख्यालय में कमल नाथ ने पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और प्रदेश प्रभारी रणदीप सिंह सुरजेवाला की मौजूदगी में कहा, "उन्हें मध्य प्रदेश के मतदाताओं पर पूरा भरोसा था और आगे भी यही भरोसा रहेगा। भाजपा से उम्मीद करता हूं कि वह प्रदेश की जनता के भरोसे पर खरा उतरेगी और उसके साथ विश्वासघात नहीं करेगी।"
कमलनाथ ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि राज्य में नौजवानों के भविष्य, रोजगार और कृषि क्षेत्र पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है और कांग्रेस इस दिशा में अपनी जिम्मेदारियां का निर्वहन करेगी। वहीं कांग्रेस की ओर से आखिर क्या कमी रह गई जिसके चलते उसे हार का सामना करना पड़ा, इसके लिए वह कांग्रेस के निर्वाचित विधायक और हारे हुए उम्मीदवारों से विमर्श करेंगे। 77 के कमलनाथ, 72 के अशोक गहलोत; MP-राजस्थान में कांग्रेस की हार से अंत हो सकती है सियासी पारी
मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान एक रैली के दौरान लोगों से पूछा था- मेरा क्या कसूर था कि मेरी सरकार गिराई? 77 साल की उम्र में वह एमपी के लोगों से भावुक अपील करने की कोशिश कर रहे थे। वह सहानुभूति कार्ड खेलने की कोशिश कर रहे थे। उन्होंने लोगों से कहा कि उनकी 15 महीने की सरकार को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने अलोकतांत्रिक तरीकों से गिरा दिया था। हालांकि मतदाताओं ने कमलनाथ को मुख्यमंत्री की कुर्सी के रूप में आखिरी मौका देने से इनकार कर दिया है। कांग्रेस मध्य प्रदेश में भारी हार का सामना कर रही है। इस साल की शुरुआत तक कमलनाथ लोगों को दी जा रही गारंटी का हवाला देते हुए जीत के प्रति आश्वस्त थे। उन्होंने कर्नाटक में कांग्रेस की जीत का फायदा उठाते हुए सत्ता में आने पर महिलाओं को प्रति माह 1,500 रुपये और 500 रुपये में एलपीजी सिलेंडर देने की पेशकश की थी।
उनकी स्वास्थ्य की स्थिति को देखते हुए बतौर सीएम कैंडिडेट कमलनाथ के लिए यह आखिरी चुनाव था। इससे पहले उन्होंने पिछले साल कांग्रेस अध्यक्ष की दौड़ में होने की सभी अफवाहों को खारिज कर दिया था। उन्होंने कहा था कि उनका मिशन केवल मध्य प्रदेश के चुनावों पर ध्यान केंद्रित करना था। कमलनाथ को उनके पूर्व सहयोगी ज्योतिरादित्य सिंधिया ने झटका दिया था। उनकी अगुवाई में विधायकों ने बगावत कर दिए। एमपी में कांग्रेस की सरकार गिर गई। कमलनाथ के करीबी लोगों का कहना था कि वे सिंधिया से बदला लेंगे। हालांकि, उन्हें जनता ने यह मौका नहीं दिया। भाजपा ने ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में प्रभावशाली प्रदर्शन किया है। इसे सिंधिया का गढ़ माना जाता है।
चुनाव अभियान के अंतिम सप्ताह में कमलनाथ अपने गढ़ छिंदवाड़ा चले गए थे। वहां से पूरे राज्य में अभियान चलाया था। कमलनाथ ने रोजाना अधिकतम दो-तीन रैलियां कीं। वहीं, शिवराज सिंह चौहान ने आखिरी दो हफ्तों में 165 निर्वाचन क्षेत्रों को कवर करते हुए रोजाना 10-12 रैलियां कीं। कमलनाथ ने राज्य में बड़े पैमाने पर प्रचार करने के लिए प्रियंका गांधी वाड्रा को लाया और राहुल गांधी ने भी देर से प्रवेश किया। हालांकि शिवराज सिंह चौहान की लोकप्रिय 'लाडली बहना' योजना के सामने सभी विफल रहे।
कमलनाथ 1980 से छिंदवाड़ा के सांसद थे। 2019 में छिंदवाड़ा की विधानसभा सीट से विधायक बनकर सीएम बने। लेकिन पूरे कार्यकाल के लिए मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने का उनका सपना शायद अब सपना ही रह जाए। वहीं, राजस्थान में अशोक गहलोती की भी स्थिति ऐसी ही है। उम्र उनके पक्ष में भी नहीं हैं। वह 72 साल के हैं। कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव के समय वह चर्चा में आए, लेकिन उन्होंने मुख्यमंत्री बने रहने में भी भलाई समझी। इस चुनाव में उन्हें भी हार का सामना करना पड़ा है। अगल चुनाव अगर तय समय पर होगा तो वह 77 साल के रहेंगे।