राजा दशरथ ने पुत्र प्राप्ति के लिए छत्तीसगढ़ के श्रृंगी ऋषि से कराया था ये विशेष यज्ञ: तब हुए थे प्रभु श्रीराम

धमतरी.

धमतरी जिले से भगवान श्रीराम का खास नाता रहा है, क्योंकि भगवान श्रीरामचंद्र जी का जन्म यज्ञ से हुआ था। जब राजा दशरथ को उत्तराधिकारी के रूप में पुत्र नहीं प्राप्त हो रहा था। तब महर्षि वशिष्ट ने उन्हे सिहावा के महेंद्र गिरी पर्वत में श्रृंगी ऋषि के शरण में जाने की सलाह दी थी।तब राजा दशरथ के साथ श्रृंगी ऋषि अयोध्या आए जहां उन्होंने पुत्रयेष्ठी यज्ञ संपन्न कराया, यज्ञ से प्राप्त खीर को राजा दशरथ की तीनों रानियों को खिलाया गया। इसके बाद ही भगवान राम, भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न का जन्म हुआ था।

वेदों के अनुसार सप्तऋषियों में एक श्रृंगी ऋषि है। यहां पहाड़ी पर एक छोटा सा कुंड भी है, जिसे महानदी का उदगम स्थल भी कहा जाता है जो पहाड़ी के ठीक नीचे बह रही महानदी से संबंध है। ये एक अजूबा ही कहा जाता है जहां पत्थरीले पहाड़ी के ऊपर एक पानी का कुण्ड बना है। पहाड़ी से ठीक नीचे उतरने पर एक आश्रम मिलता है जहां बहुत से साधु संत तपस्या में लीन रहते है। आश्रम ग्राम पंचायत रतावा के समीप स्थित नवखंड पर्वत में है जहां उन्होंने तप किया था। यहां एक छोटी सी गुफा में अंगिरा ऋषि की मूर्ति विराजित हैं। श्रद्धालुओं में उनके प्रति अटूट आस्था है। जो भी दर्शन करने आते हैं, उनकी मनोकामना अवश्यपूर्ण होती है।

राम वन गमन पथ
छत्तीसगढ़ सरकार ने धमतरी से 80 किलोमीटर की दूरी पर सिहावा पर्वत श्रृंखला में सप्तऋषि आश्रम को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के लिए सिहावा को राम वन गमन परिपथ योजना मे सम्मिलित किया है। सिहावा पर्वत श्रृंखला का सप्तऋषि आश्रम राम वन गमन पथ के उन नौ धार्मिक पर्यटन स्थलों में से एक है, जिन्हें राम वन गमन पथ के अंतर्गत विकसित किया जा रहा है।
रामायण के अनुसार प्रभु श्रीराम अपने वनवास के दौरान जब छत्तीसगढ़ आये थे तब उन्होंने अपने वनवास का कुछ समय सिहावा पर्वत में महानदी के तट पर बिताया था। प्रभु श्रीराम सिहावा पर्वत श्रृंखला में वाल्मीकि ऋषि, मुकुन्द ऋषि, कंकर ऋषि, शरभंग ऋषि, श्रृंगी ऋषि, अगस्त्य ऋषि, अगिंरा ऋषि, गौतम ऋषि सहित अन्य ऋषियों से उनके आश्रम में मिले थे एवं उनसे शिक्षा एवं मार्गदर्शन प्राप्त किया था। मान्यताओं के अनुसार सप्त ऋषियों में सबसे वरिष्ठ अंगिरा ऋषि को माना गया है। यहां दर्जन भर से ज्यादा गुफाएं हैं। पर्वत शिखर पर एक शीला में भगवान श्रीराम का पद चिन्ह भी है। जब श्रीराम वनवास के लिए निकले थे, तब उनका आगमन अंगिरा आश्रम में हुआ था जिनका पद चिन्ह अभी भी देखा जा सकता है। 

प्रभु श्रीराम के जीजा थे श्रृंगी ऋषि  
श्रृंगी ऋषि रामायण काल के जाने माने बेहद सिद्ध पुरुष थे। धार्मिक मान्यता के अनुसार राजा दशरथ और कौशल्या की एक पुत्री थीं, जिनका नाम शांता था। जिन्हें कौशल्या की बहन वर्षिणी और उनके पति अंग देश के राजा रोमपद ने गोद लिया था। वहीं शांता का विवाह ऋषि श्रृंगी से कर दिया गया। इस तरह रिश्ते में ऋषि शृंगी राजा दशरथ के दमाद और प्रभु श्रीराम के जीजा हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button