मझवा विधान सीट पर उपचुनाव की तैयारी शुरू, इस सीट पर सपा नहीं खोल पाई है खाता

मीरजापुर
मझवा विधान सीट पर उपचुनाव की तैयारी शुरू हो गई है। गठबंधन और उनकी पार्टियों के बीच सीट हथियाने को लेकर एड़ी-चोटी का जोर लगाया जा रहा है। प्रमुख पार्टियों की राष्ट्रीय व प्रदेश स्तरीय बैठक भी हो गई है। इसमें महत्वपूर्ण कड़ी जहां प्रत्याशी चयन को लेकर है वहीं गठबंधन के बीच पार्टी सिंबल भी चुनौती बना हुआ है। इसका प्रमुख कारण इस सीट पर सपा को छोड़ सभी पार्टियों को मौका मिलना माना जा रहा है। यहां कांग्रेस दो बार जीत हासिल कर चुकी है।

मझवा सीट जीतकर इतिहास रचने की कोशिश में पार्टियां
इसके साथ ही जनता पार्टी व जनता दल एक-एक, बसपा पांच बार तथा भाजपा दो और गठबंधन की निषाद पार्टी एक बार जीते चुके हैं। ऐसे में पार्टियां इस कोशिश में लगी हैं कि मझवा सीट जीतकर इतिहास रचा जाए। दरअसल, मझवा सीट 2017 के विधानसभा चुनाव से अब तक भाजपा और उसके सहयाेगी निषाद पार्टी के कब्जे में है। भाजपा हर हाल में इस सीट को अपने पाले में रखने की कोशिश में है। इसके लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपना रुख स्पष्ट कर दिया है।

गठबंधन से सीट मिलने की जोर आजमाइश में सपा
यही नहीं मझवा सीट जीतने के लिए तीन-तीन मंत्रियों को भी क्षेत्र में लगा दिया है। वहीं सपा प्रदेश में आइएनडीआइए की प्रमुख सहयोगी पार्टी है। ऐसे में सपा भी पूरी जोर आजमाइश लगा रही है कि गठबंधन से सीट उसे मिले। सपा लोकसभा चुनाव 2024 के परिणाम से भी खासा उत्साहित है। उसे विश्वास है कि मझवा सीट उसे हासिल करना मुश्किल नहीं होगा। एक बात बता दें कि सपा को मझवा सीट से जीत का अभी तक एक बार भी स्वाद नहीं लगा है। साथ ही सपा 2007, 2012 और 2022 के विधान चुनाव में दूसरा स्थान प्राप्त करने में सफल भी हुई। बहरहाल, इस पूरे समीकरण में बसपा की भूमिका मझवा सीट पर एकतरफा रही है।

तीन बार विधायक रहे रमेश बिंद
बसपा इस सीट पर पांच बार जीत हासिल कर अपना मजबूत जनाधार जता चुकी है। बसपा को पहली जीत यहां 1991 में मिली, फिर 1993, 2002, 2007, 2012 में भी बसपा ने जीत हासिल की। इसमें तीन बार भदाेही से भाजपा के सांसद रहे रमेश बिंद विधायक रहे। वहीं कांग्रेस के लोकपति त्रिपाठी दो बार विधायक चुने गए।

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