मोहन भागवत के मंदिर-मस्जिद पर बयान का RSS के मुखपत्र ने किया समर्थन
नई दिल्ली
आरएसएस चीफ मोहन भागवत ने पिछले दिनों एक भाषण में कहा था कि हमें हर मस्जिद में मंदिर खोजने की जरूरत नहीं है। उन्होंने कहा था कि कुछ लोग हर राम मंदिर जैसा विषय खड़ा करके हिंदू नेता बनना चाहते हैं। इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता। उनके इस बयान का एक वर्ग ने समर्थन किया तो वहीं हिंदूवादी संगठनों और कुछ संतों ने राय को खारिज कर दिया। यही नहीं पिछले सप्ताह आरएसएस से जुड़ी पत्रिका ऑर्गनाइजर ने सोमनाथ से संभल तक की एक कवर स्टोरी लगाई थी और इसे सभ्यतागत न्याय का सवाल बताया था। लेकिन अब आरएसएस से ही जुड़ी मैगजीन पांचजन्य में मोहन भागवत की राय को सही बताया गया है।
पांचजन्य के संपादकीय में कहा है कि मस्जिद-मंदिर विवाद के फिर से उठने पर संघ प्रमुख मोहन भागवत की हालिया टिप्पणी समाज से इस मामले में एक 'समझदारी भरा रुख' अपनाने का स्पष्ट आह्वान है। इसने इस मुद्दे पर 'अनावश्यक बहस और भ्रामक प्रचार' के प्रति भी आगाह किया। आरएसएस प्रमुख ने हाल में देश भर में मंदिर-मस्जिद विवादों के फिर से उठने पर चिंता व्यक्त की और कहा कि अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के बाद कुछ व्यक्तियों को ऐसा लगने लगा है कि वे ऐसे मुद्दों को उठाकर 'हिंदुओं के नेता' बन सकते हैं। 19 दिसंबर को पुणे में सहजीवन व्याख्यानमाला में 'भारत: विश्वगुरु' विषय पर व्याख्यान देते हुए भागवत ने समावेशी समाज की वकालत की और कहा कि दुनिया को यह दिखाने की जरूरत है कि भारत सद्भाव के साथ रह सकता है।
आरएसएस के मुखपत्र ‘पांचजन्य’ के संपादक हितेश शंकर के 28 दिसंबर के संपादकीय में कहा गया है, 'आरएसएस प्रमुख मोहनराव भागवत के मंदिरों पर दिए गए हालिया बयान के बाद मीडिया जगत में घमासान (वाकयुद्ध) छिड़ गया है। या यूं कहें कि यह जानबूझकर किया जा रहा है। एक स्पष्ट बयान के अलग-अलग अर्थ निकाले जा रहे हैं। हर दिन नई प्रतिक्रियाएं आ रही हैं।' उन्होंने कहा कि इन प्रतिक्रियाओं में स्वतःस्फूर्त सामाजिक राय के बजाय "सोशल मीडिया विशेषज्ञों द्वारा उत्पन्न किया गया कोहराम और उन्माद" अधिक दिखाई देता है। संपादकीय में कहा गया कि भागवत का बयान समाज से इस मुद्दे के प्रति समझदारी भरा रुख अपनाने का स्पष्ट आह्वान है।
'मंदिरों का राजनीतिक लाभ लेने का चलत गलत है'
इसमें कहा गया है, 'यह सही भी है। मंदिर हिंदुओं की आस्था के केंद्र हैं, लेकिन राजनीतिक लाभ के लिए उनका इस्तेमाल कतई स्वीकार्य नहीं है। आज के दौर में मंदिरों से जुड़े मुद्दों पर अनावश्यक बहस और भ्रामक दुष्प्रचार को बढ़ावा देना चिंताजनक प्रवृत्ति है। सोशल मीडिया ने इस प्रवृत्ति को और तेज कर दिया है।' संपादकीय के अनुसार, 'खुद को सामाजिक कहने वाले कुछ असामाजिक तत्व सोशल मीडिया मंचों पर स्वयंभू रक्षक और विचारक बन बैठे हैं। ऐसे अविवेकी विचारकों से दूर रहने की जरूरत है जो समाज के भावनात्मक मुद्दों पर जनभावनाओं का इस्तेमाल करते हैं।' संपादकीय में कहा गया है कि भारत एक ऐसी सभ्यता और संस्कृति का नाम है, जिसने हजारों वर्षों से न केवल अनेकता में एकता के दर्शन का प्रचार किया, बल्कि उसे जीया और आत्मसात भी किया।
संपादकीय में मीडिया पर लगाया सनसनी फैलाने का आरोप
इसमें कहा गया है, 'यह भूमि केवल भौगोलिक ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक, सामाजिक और आध्यात्मिक मूल्यों का जीवंत स्पंदन है। ऐसे में मंदिरों का महत्व केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि सामाजिक और ऐतिहासिक भी है।' संपादकीय में कहा गया है कि ऐतिहासिक और आध्यात्मिक मूल्यों से रहित, लेकिन राजनीतिक स्वार्थ से भरे 'कुछ तत्वों' ने अपनी राजनीति को बढ़ावा देना, समुदायों को भड़काना और हर गली और इलाके में 'हिंदू मंदिरों' को बचाने की आड़ में खुद को सर्वश्रेष्ठ हिंदू विचारक के रूप में पेश करना शुरू कर दिया है। इसमें कहा गया है, 'मंदिरों की खोज को सनसनीखेज तरीके से प्रस्तुत करना शायद मीडिया के लिए भी एक चलन बन गया है और यह एक प्रकार का मसाला है, जो 24 घंटे चलने वाले (समाचार) चैनलों और समाचार बाजार की भूख को पूरा रखता है।'