सरला मिश्रा हत्याकांड: दिग्विजय सिंह को कांग्रेस से हटाने की मांग, जीतू पटवारी को सौंपा ज्ञापन

भोपाल
 मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह के लिए आजकल दिन अच्छे नहीं चल रह हैं। पहले BJP RSS पर लेकर दिए बयान को लेकर उन्हें पार्टी के भीतर ही विरोध सहना पड़ा । अब एक पुराने मामले में उनको कांग्रेस पार्टी से हटाने के लिए मांग उठी है।

दिग्विजय सिंह को पार्टी से निष्कासित करने के लिए कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी को एक ज्ञापन सौंपा गया है। यह ज्ञापन कांग्रेस नेत्री रही स्वर्गीय सरला मिश्रा के भाई अनुराग मिश्रा ने दिया है। अनुराग मिश्रा ने जीतू पटवारी को ज्ञापन सौंपकर दिग्विजय को पार्टी से बाहर करने की मांग कर डाली है। आपको बता दें कि  सरला मिश्रा हत्याकांड में दिग्विजय सिंह पर संगीन आरोप हैं. वहीं कोर्ट ने भी 28 साल पुराने सरला मिश्रा हत्याकांड फिर से जांच के आदेश दिए हैं.

इसी साल अप्रैल में कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई के दौरान सवाल उठाया था कि 90 फीसदी जलने के बाद कोई पीड़ित मौत से पहले बयान कैसे दे सकता है।यही नहीं बयान देने के बाद उस पर साइन कैसे कर सकता है.पुलिस ने सरला मिश्रा केस में वर्ष 2000 में क्लोजर रिपोर्ट दाखिल करके मौत को खुदकुशी बताया गया था. लेकिन सरला के भाई अनुराग मिश्रा ने जांच को फिर से शुरू करने के लिए अदालत में याचिका दाखिल की थी । 

कांग्रेस नेत्री निधि चतुर्वेदी ने दिग्विजय सिंह Digvijay Singh के विरुद्ध कड़ी अनुशासनात्मक कार्रवाई करने की मांग की। उनके RSS संबंधी बयान को लेकर फेसबुक पोस्ट में निधि चतुर्वेदी ने कहा कि इससे पार्टी की वैचारिक लड़ाई कमजोर हुई, जमीनी कार्यकर्ताओं का मनोबल टूटा है।
निधि चतुर्वेदी ने सोशल मीडिया पर लिखा-

वैचारिक दोगलापन या घर वापसी की छटपटाहट! कांग्रेस की जड़ों में मट्ठा डालनेवाले दिग्विजयसिंह पर कब होगी कार्रवाई?

दिग्विजय सिंह के हालिया बयान ने राहुल गांधी से लेकर उन तमाम जमीनी कार्यकर्ताओं के मुंह पर तमाचा मार दिया है, जो आरएसएस और बीजेपी की विचारधारा के खिलाफ सड़क पर लड़ रहे हैं। एक वरिष्ठ कांग्रेसी नेता होने के नाते उनकी यह जिम्मेदारी बनती थी कि वे पार्टी के वैचारिक संघर्ष को धार देते, न कि विपक्षी खेमे का गुणगान कर अपने ही कार्यकर्ताओं का मनोबल तोड़ते। सुर्खियों में बने रहने की उनकी इस 'ऊल-जलूल' बयानबाजी ने आज हर सच्चे कांग्रेसी के आत्म-सम्मान को गहरी ठेस पहुंचाई है।
दो दशक में पार्टी को खोखला किया

फेसबुक पोस्ट में निधि चतुर्वेदी ने आरोप लगाया कि दिग्विजयसिंह के हस्तक्षेप के कारण पार्टी के कई समर्पित नेता हाशिए पर चले गए। पिछले दो दशकों से प्रदेश में कांग्रेस की राजनीति में उनका जबर्दस्त हस्तक्षेप रहा है। संगठनात्मक फैसलों से लेकर नेतृत्व चयन तक में दिग्विजय सिंह की निर्णायक भूमिका रही है। उनकी व्यक्ति-केंद्रित राजनीति और अंदरूनी खींचतान के कारण पार्टी को खासा नुकसान हुआ।

निधि चतुर्वेदी ने दिग्विजय सिंह की राजनैतिक निष्ठा और विरासत पर भी सवाल खड़े किए। उन्होंने कहा है कि अनेक पुस्तकों, राजनेताओं की जीवनियों और शोध पत्रों में राघोगढ़ राजघराने का हिंदू महासभा से जुड़ाव का उल्लेख किया गया है। निधि चतुर्वेदी के अनुसार RSS व बीजेपी के नेता राम माधव ने दावा किया था कि दिग्विजय सिंह के पिता बलभद्र सिंह हिंदू महासभा के समर्थन से विधायक बने थे। स्वयं दिग्विजय सिंह भी हिंदू महासभा के सदस्य के रूप में नगरपालिका में पदासीन हुए थे।

क्या था सरला मिश्रा हत्याकांड?
महिला कांग्रेस कार्यकर्ता सरला मिश्रा 14 फरवरी 1997 को भोपाल स्थित अपने घर में जली हुई हालत में मिली थीं. उन्हें दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां पांच दिन बाद उनकी मौत हो गई. सरला के परिवार ने इसे हत्या बताया था और आरोप लगाया कि इसमें दिग्विजय सिंह और उनके भाई लक्ष्मण सिंह का हाथ था. सरला की मौत के बाद मध्य प्रदेश में सियासी तूफान आ गया था. तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह पर भी मामले को दबाने के भी आरोप लगे थे. पिछले साल सरला के भाई अनुराग मिश्रा ने मामले को बंद करने के खिलाफ मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में एक विरोध याचिका दायर की थी. हाईकोर्ट ने भोपाल की एक कोर्ट को शिकायतकर्ता समेत केस के गवाहों के बयान दर्ज करने और यह जांच करने के लिए कहा था कि क्या केस को बंद करना कानून के मुताबिक था.

साल 2000 में पुलिस ने दाखिल की थी क्लोजर रिपोर्ट
इसी साल अप्रैल में कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई करते हुए यह सवाल उठाया था कि 90 फीसदी जलने के बाद कोई पीड़ित मौत से पहले बयान कैसे दे सकता है. बयान देने के बाद उसपर साइन कैसे कर सकता है. दरअसल पुलिस ने सरला मिश्रा केस में साल 2000 में क्लोजर रिपोर्ट दाखिल की थी, जिसमें इसे खुदकुशी बताया गया था. हालांकि अनुराग इससे संतुष्ट नहीं थे. उन्होंने जांच को फिर से शुरू करने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया था. अदालत ने उनकी याचिका स्वीकार करते हुए कहा था कि केस की जांच अधूरी थी.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button