मध्य प्रदेश में 30 साल बाद देखने को मिल रही CM पद के लिए लॉबिंग; BJP में पहली बार क्यों मचा घमासान?

भोपाल
मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव खत्म हो गए हैं। भाजपा अपनी आंधी में 230 में से 163 सीटें जीतकर कांग्रेस को 66 सीटों पर समेट चुकी है, लेकिन प्रदेश का मुख्यमंत्री कौन होगा ? इसकी जोड़ तोड़ जारी है। 6 माह बाद होने वाले लोकसभा चुनाव को देखते हुए सीएम का नाम तय हो सकता है। नरेंद्र सिंह तोमर, प्रहलाद पटेल सांसद पद से इस्तीफा दे चुके हैं, ऐसे में अब इन्हें प्रदेश में बड़ी जिम्मेदारी मिलना लगभग तय मानी जा रही है। इस बीच शिवराज सिंह चौहान भी मैदान में सक्रिय नजर आ रहे हैं।

दरअसल,मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री के पद को लेकर 30 साल बाद एक बार फिर जोर-शोर से लॉबिंग चल रही है। बहुमत से जीतकर आई भाजपा में यह पहला मौका जब एक साथ कई दिग्गजों के नाम बतौर दावेदार उभरे हैं। शिवराज चौहान दावेदार माने जा रहे हैं। सभी नेता अपनी तरफ से कह चुके हैं कि वे रेस में नहीं है, लेकिन पिछले 3 तीन दिन से एक ही सवाल का जवाब खोजा जा रहा है कि प्रदेश का नया मुख्यमंत्री कौन बनेगा। इससे पहले 1993 में कांग्रेस विधायक दल के नेता को लेकर जमकर लॉबिंग हुई थी। पांच दिग्गज नेताओं के नाम चले फिर दिग्विजय सिंह और श्यामाचरण शुक्ल के बीच वोटिंग में फैसला हुआ था।

भाजपा में पहली बार चल रही है उठापटक
बीते दो दशक के दौरान मध्यप्रदेश में सीएम की कुर्सी को लेकर सियासी उठा पटक सामने नहीं आई है। 2003 में उमा भारती के नेतृत्व में भाजपा ने 173 सीटें जीत कर नया रिकॉर्ड बनाया था। वह विधायक दल की नेता चुनी गई। बाद में साढ़े 8 माह बाद उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। फिर बाबूलाल गौर राज्य के सीएम बने। सवा साल बाद 29 नवंबर 2005 को गौर का इस्तीफा हुआ। इसके बाद शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री के पद पर काबिज हुए। 18 साल से शिवराज ही सीएम है, लेकिन 2018 में सवा साल कमलनाथ सरकार आई। 2020 में सिंधिया के कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आने के बाद एक बार फिर भाजपा की सरकार बनी। इस सरकार में भी  शिवराज सीएम बनाए गए।  

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